Tuesday, 29 December 2009

सबको मुबारक नया साल

सत्ता के नए ठांव
बिसरते गाँव
दहकता शहर
आतंक का कहर
बहुत गुल खिला गुजरे साल
सबको मुबारक नया साल।



पड़ोस क़ी आग
खूनी फाग
बिजनेस में बोर

रिश्ते का जोर
बहुत गुल खिला गुजरे साल
सबको मुबारक नया साल।




जानलेवा गर्मी
बाज़ार की नरमी
कानून से खिलवाड़
पैबंद लगी दीवार
बहुत गुल खिला गुजरे साल
सबको मुबारक नया साल।

1 comment:

Anonymous said...

Aaku Srivastava to me


i reciprocate the same

  गजल   पूरी नजर से अधूरा घर देखता हूं। गांवों में अधबसा शहर देखता हूं।   पूरे सपने बुने, अधूरे हासिल हुए। फिर-फिर मैं अपने हुनर...