हमारे और तुम्हारे
अलग-अलग अस्तित्व,
एकाकार होते हम
अँधेरे में बिस्तर पर
संवेदना के
व्यापक गलियारे में
विचरते
अलग-अलग,
साथ-साथ.
कुलांचे भरती
तुम्हारी कल्पना
हमारे स्थिर मन को
अक्सर झकझोरती है.
वो तुम्हारा अस्तित्व है
मेरे और तेरे से
हम होने तक का
एहसास कराती है.
तुम्हारा चंचल मन
खुद की बेकरार सांसों
के बरक्स
मिलन का भाव जगती है.
और यहीं से पैदा होता है
शाश्वत प्यार.
Sunday 17 January 2010
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1 comment:
अधेरे में और भी बहुत कुछ होता है। कुछ उन पर भी आपके विचार आएं।
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