Tuesday 12 October 2021

 पीड़ित क्रांति


क्रांति, तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल

सुना, घर छोड़ गया जो बेटा था वाचाल

 

तर्पण तुम्हारे विचारों का कर दिया

अवशेष फल्गु की धारा में बहा दिया

आखिरी लाल सलाम भी कह दिया

 

उखड़ा पैबंद, तुम फिर हुई फटेहाल

क्रांति, तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल

 

छोड़ गया वो छोरा तुमको बीच धार

नहीं हो सकी नवोन्माद की नैया पार

फंसी थी, फंसी रह गई तुम मझधार

 

ऐसे क्यूं बदला लेनिनग्राद का लाल

क्रांति, तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल

 

अपने घर में हारा तो घर ही तोड़ गया

कैसा लड़ाका! डंडा-झंडा छोड़ गया

बदल विचारों को सारी धारा मोड़ गया

 

तेरे इंकलाब का यह असमय इंतकाल

क्रांति, तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल

Wednesday 8 September 2021

 

चांद, तारे, फूल, शबनम

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चांद, जिस पर मैं गया नहीं

जिसे मैंने कभी छुआ नहीं

उजले-काले रंगों वाला-

जो दिन में कभी दिखा नहीं

 

चांद तुम्हें मैं कैसे कह दूं

गलतबयानी मैं कैसे कर दूं

 

तारे, दूर गगन में रहते हैं

मुट्ठी में कभी न आते हैं

दूर बहुत उसकी टिमटिम

पौ फटते ही गुम जाते हैं

 

तारे तुमको कैसे लाकर दूं

गलतबयानी में कैसे कर दूं

 

फूल, इतने सारे गुलशन में

अजग-गजब के महक चमन में

इतने-इतने रंगों में है मिलता

मैं भटक गया हूं इस उपवन में

 

फूल तुम्हें मैं खत में क्यों भेजूं

गलतबयानी में कैसे कर दूं

 

शबनम, इन बूंदों की क्या बिसात

तुम, तुम हो इसकी क्या औकात

मौसम का मारा रहता ये खुद ही

इससे कब बननी अपनी बात

 

शबनम के माफिक क्यों लिख दूं

गलतबयानी मैं कैसे कर दूं

Wednesday 3 March 2021

 

ओ कवि!

ओ कवि!

कुछ और रचो।

शब्द बहुत लिखे,

भाव भी उड़ेले।

 

देखो तो!

शब्द-भाव के हाल।

एक सहमा-सा,

दूजा बेजान-सा।

 

कविराज!

अर्थ पर आओ।

किसी को चुभे नहीं,

भवें कहीं तने नहीं।

 

नहीं मानोगे!

तो लिख डालो।

न डरे हैं, न डरेंगे

मेरे शब्द चुभेंगे।

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