शब्दों की धार से
कहीं ज्यादा मायने रखती है
वाक्यार्थों की धारा
लेखक का भाव
उसका झुकाव
किसी भी वाद पंथ या इज्म विशेष के प्रति
पूरी तरह समर्पित
लेखन की विधा
हो सकती है अलग-अलग
लेकिन
कलम की दुकानदारी
लाभप्रद नहीं तो क्या मजा !
कसम अरुण शौरी की
पत्रकारिता तब तक नहीं सफल
जब तक न मिले मंत्री पद
टूकरों को बेचते-बेचते
एक दिन कर देंगें देश का भी विनिवेश!
मृदुला सिन्हा की शर्त पर मैं कहूं
कैसी और क्यों निर्मला
ज्यों मेहंदी के रंग
रंगत में तो आई
भले ही पीछे से
जमात विशेष चिल्लाई !
भवेश
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1 comment:
Bhawesh ji subhkamayen.lage rahen itzar ka apno 'bhugol' hai.
Rajneesh
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