तेरे स्पृश्य चेहरे पर
उभरने वाले भावों-विचारों को
पढता हूँ -
हर रोज, हर पल, हर वक़्त .
मुझे एहसास है
तुम्हारी गहराइयों का,
तुम्हारे ख्वाब
तुम्हारे सपनों की भी
परवाह है मुझे.
मैं कह सकता हूँ
यह महज प्यार नहीं,
दूर तक सुनी जाने वाली
दिल की आवाज़ नहीं
बंधन है, आलोड़न है, अपनापन है
ये मैं नहीं हम कहते हैं.
Sunday 24 January 2010
Sunday 17 January 2010
शाश्वत प्यार
हमारे और तुम्हारे
अलग-अलग अस्तित्व,
एकाकार होते हम
अँधेरे में बिस्तर पर
संवेदना के
व्यापक गलियारे में
विचरते
अलग-अलग,
साथ-साथ.
कुलांचे भरती
तुम्हारी कल्पना
हमारे स्थिर मन को
अक्सर झकझोरती है.
वो तुम्हारा अस्तित्व है
मेरे और तेरे से
हम होने तक का
एहसास कराती है.
तुम्हारा चंचल मन
खुद की बेकरार सांसों
के बरक्स
मिलन का भाव जगती है.
और यहीं से पैदा होता है
शाश्वत प्यार.
अलग-अलग अस्तित्व,
एकाकार होते हम
अँधेरे में बिस्तर पर
संवेदना के
व्यापक गलियारे में
विचरते
अलग-अलग,
साथ-साथ.
कुलांचे भरती
तुम्हारी कल्पना
हमारे स्थिर मन को
अक्सर झकझोरती है.
वो तुम्हारा अस्तित्व है
मेरे और तेरे से
हम होने तक का
एहसास कराती है.
तुम्हारा चंचल मन
खुद की बेकरार सांसों
के बरक्स
मिलन का भाव जगती है.
और यहीं से पैदा होता है
शाश्वत प्यार.
Wednesday 13 January 2010
नए निजाम में
बहुत शोर है कि
बदल गया है निजाम
बदल गयी है व्यवस्था
तौर-तरीके सभी शासन-सियासत के
फिर शुरू हो चुका है
तबादलों का व्यवसाय
और
सुशासन का पीटा जाने लगा है
ढिंढोरा
बेआवाज-सा
आज एक सेमिनार का आयोजन था
प्राथमिक शिक्षा के सुदृढीकरण पर चर्चा हुई
शहर के तीन सितारा होटल में
बुद्धिजीवियों से खचाखच भरा -
कांफ्रेंस हॉल
मुर्गे की टांग चबा-चबा
बिसलरी का पानी पी-पीकर
उन्होंने रखी अपनी बात
चलती रहनी चाहिए
मध्याह्न भोजन यानी खिचड़ी-भोज
नौनिहालों को पढ़ाना है
सुशिक्षित बनाना है
समाज को सुधारना है
भई, नया निजाम है
नए तरीके हैं.
हमीं हैं पागल
कुछ अच्छे की सोच रखते हैं
आखिर, वही पुराना हम्माम है
और वही चेहरे हैं
नंगे और अधनंगे सभी .
बदल गया है निजाम
बदल गयी है व्यवस्था
तौर-तरीके सभी शासन-सियासत के
फिर शुरू हो चुका है
तबादलों का व्यवसाय
और
सुशासन का पीटा जाने लगा है
ढिंढोरा
बेआवाज-सा
आज एक सेमिनार का आयोजन था
प्राथमिक शिक्षा के सुदृढीकरण पर चर्चा हुई
शहर के तीन सितारा होटल में
बुद्धिजीवियों से खचाखच भरा -
कांफ्रेंस हॉल
मुर्गे की टांग चबा-चबा
बिसलरी का पानी पी-पीकर
उन्होंने रखी अपनी बात
चलती रहनी चाहिए
मध्याह्न भोजन यानी खिचड़ी-भोज
नौनिहालों को पढ़ाना है
सुशिक्षित बनाना है
समाज को सुधारना है
भई, नया निजाम है
नए तरीके हैं.
हमीं हैं पागल
कुछ अच्छे की सोच रखते हैं
आखिर, वही पुराना हम्माम है
और वही चेहरे हैं
नंगे और अधनंगे सभी .
Sunday 10 January 2010
ज़रा जल्दी करो
मौन रहने की
आदत नहीं रही कभी
इसलिए
बोल जाता हूँ.
बोलने की पुरानी -
आदत रही है - सो
कह के निकलता हूँ.
तुम्हारी खामोशी
और हमारी बकबकी के मध्य
खिंची दीवार की -
मजबूती बनी रहेगी
तब तक - जब तक
ये तय नहीं हो जाता
कि दीवार कायम -
है तो सही है
कि गलत है.
सवालों की ये -
गुंजाइश बड़े जोर से
बन आयी है
कि बहुत सारे
रो रहे हैं.
हंस रहे बहुत कम
कि बहुत सारे दुखी हैं.
खुश हैं बहुत कम
बहुत सारे लूटने में लगे
वाजिब भी पाते बहुत कम
कि बहुत सारे गैर जिम्मेदार
गिनती के हैं जिम्मेदार
कि व्यवस्था बिगड़ चुकी
बहुत हद तक
थोडा बहुत ही शायद अच्छा
कि बहुत सारे हैं गुस्साए बैठे
फूटता है गुस्सा मगर क्यों नहीं
तभी तो सोचता हूँ
इस दीवार के बरक्स
जो सबूत हैं
कि न बोलने वालों की
बढ़ती तादाद और
चुप्पी तोड़ने वालों के
मंसूबों पर फिरता जा रहा पानी
दिन - ब - दिन
मोटी होती दीवार
गिरानी तो होगी
चुप्पी तोडनी तो होगी
लेकिन कब ...
आदत नहीं रही कभी
इसलिए
बोल जाता हूँ.
बोलने की पुरानी -
आदत रही है - सो
कह के निकलता हूँ.
तुम्हारी खामोशी
और हमारी बकबकी के मध्य
खिंची दीवार की -
मजबूती बनी रहेगी
तब तक - जब तक
ये तय नहीं हो जाता
कि दीवार कायम -
है तो सही है
कि गलत है.
सवालों की ये -
गुंजाइश बड़े जोर से
बन आयी है
कि बहुत सारे
रो रहे हैं.
हंस रहे बहुत कम
कि बहुत सारे दुखी हैं.
खुश हैं बहुत कम
बहुत सारे लूटने में लगे
वाजिब भी पाते बहुत कम
कि बहुत सारे गैर जिम्मेदार
गिनती के हैं जिम्मेदार
कि व्यवस्था बिगड़ चुकी
बहुत हद तक
थोडा बहुत ही शायद अच्छा
कि बहुत सारे हैं गुस्साए बैठे
फूटता है गुस्सा मगर क्यों नहीं
तभी तो सोचता हूँ
इस दीवार के बरक्स
जो सबूत हैं
कि न बोलने वालों की
बढ़ती तादाद और
चुप्पी तोड़ने वालों के
मंसूबों पर फिरता जा रहा पानी
दिन - ब - दिन
मोटी होती दीवार
गिरानी तो होगी
चुप्पी तोडनी तो होगी
लेकिन कब ...
Friday 1 January 2010
तपती ज़िंदगी
मानता हूँ कि सही आकर के लिए
लोहे को खूब तपाया जाता है,
फिर पीटा भी जाता है।
छोटे-बड़े तरह-तरह के -
हथोड़े का दर्द पिलाया जाता है।
अच्छा होता है सही आकार -
हर बात तरीके से
हर काम सलीके से
मिनटों में निपटाया जाता है।
बड़े दादा कहते हैं -
लोहे की तरह तपकर
आदमी सख्त व माकूल बनता है।
एक सिद्धांत या मूलमंत्र की तरह -
बार-बार समझाया जाता है।
पर,
किसी ने देखा है वो मंजर -
एक आदमी,
ज़िंदगी गुजर देता है -
ताउम्र तपता ही रह जाता है।
बसते की बोझ से गुजरकर
कुछ बनने को -
बन जाने पर निभाने को
तपना ही पड़ता है।
बीवी आती है
फिर बच्चों की खातिर।
बूढ़े माँ-बाप की -
लाठी बनता है।
खुद का बुढ़ापा
जवान हो चले बच्चे
दुःख देते हैं
ना देते हैं -
उनकी खातिर तपता है।
तपता ही जाता है।
तपता ही जाता है।
सही आकर पाने की खातिर।
पा लेता है सही आकर
सीधी आग से गुजरने के बाद
राख की शक्ल में
जिसे प्रवाहित कर दिया जाना है
कुछ ही क्षणों बाद । ।
लोहे को खूब तपाया जाता है,
फिर पीटा भी जाता है।
छोटे-बड़े तरह-तरह के -
हथोड़े का दर्द पिलाया जाता है।
अच्छा होता है सही आकार -
हर बात तरीके से
हर काम सलीके से
मिनटों में निपटाया जाता है।
बड़े दादा कहते हैं -
लोहे की तरह तपकर
आदमी सख्त व माकूल बनता है।
एक सिद्धांत या मूलमंत्र की तरह -
बार-बार समझाया जाता है।
पर,
किसी ने देखा है वो मंजर -
एक आदमी,
ज़िंदगी गुजर देता है -
ताउम्र तपता ही रह जाता है।
बसते की बोझ से गुजरकर
कुछ बनने को -
बन जाने पर निभाने को
तपना ही पड़ता है।
बीवी आती है
फिर बच्चों की खातिर।
बूढ़े माँ-बाप की -
लाठी बनता है।
खुद का बुढ़ापा
जवान हो चले बच्चे
दुःख देते हैं
ना देते हैं -
उनकी खातिर तपता है।
तपता ही जाता है।
तपता ही जाता है।
सही आकर पाने की खातिर।
पा लेता है सही आकर
सीधी आग से गुजरने के बाद
राख की शक्ल में
जिसे प्रवाहित कर दिया जाना है
कुछ ही क्षणों बाद । ।
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