Sunday, 13 December 2009

महक

इसलिए नहीं कि वो मुझे पसंद नहीं
इसलिए भी नहीं कि
उसे अपने चेहरे पर भरोसा नहीं
तो किसलिए ....

हमारे मासिक आय की
मोटी राशि खर्च देती है
और मैं देखता भर हूँ
क्योंकि वो दिखाती है
और ... मैं सोचता हूँ
काश! हम जवान होते
कुछ दशक पहले
गांव में गंवईयत थी जब।


हल्दी और चंदन
नाम के लिए है
पैकेट पर तस्वीर है
गांव की दुकान में सजी है।


कास्मेटिक की दुनिया में
डूबी हमारी बीवी
परेशान इसलिए है
क्योंकि इस डब्बे में
महक उतनी अच्छी नहीं

डब्बे - पर - डब्बे
कितना खरीदेगी
जाने कब उसको
मुफीद महक मिल पायेगी ।

No comments:

  गजल   पूरी नजर से अधूरा घर देखता हूं। गांवों में अधबसा शहर देखता हूं।   पूरे सपने बुने, अधूरे हासिल हुए। फिर-फिर मैं अपने हुनर...