Friday 1 January 2010

तपती ज़िंदगी

मानता हूँ कि सही आकर के लिए
लोहे को खूब तपाया जाता है,
फिर पीटा भी जाता है।
छोटे-बड़े तरह-तरह के -
हथोड़े का दर्द पिलाया जाता है।

अच्छा होता है सही आकार -
हर बात तरीके से
हर काम सलीके से
मिनटों में निपटाया जाता है।

बड़े दादा कहते हैं -
लोहे की तरह तपकर
आदमी सख्त व माकूल बनता है।
एक सिद्धांत या मूलमंत्र की तरह -
बार-बार समझाया जाता है।

पर,
किसी ने देखा है वो मंजर -
एक आदमी,
ज़िंदगी गुजर देता है -
ताउम्र तपता ही रह जाता है।

बसते की बोझ से गुजरकर
कुछ बनने को -
बन जाने पर निभाने को
तपना ही पड़ता है।

बीवी आती है
फिर बच्चों की खातिर।
बूढ़े माँ-बाप की -
लाठी बनता है।

खुद का बुढ़ापा
जवान हो चले बच्चे
दुःख देते हैं
ना देते हैं -
उनकी खातिर तपता है।

तपता ही जाता है।
तपता ही जाता है।
सही आकर पाने की खातिर।

पा लेता है सही आकर
सीधी आग से गुजरने के बाद
राख की शक्ल में
जिसे प्रवाहित कर दिया जाना है
कुछ ही क्षणों बाद । ।

8 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

पा लेता है सही आकर
सीधी आग से गुजरने के बाद
राख की शक्ल में
जिसे प्रवाहित कर दिया जाना है
कुछ ही क्षणों बाद । ।

Bahuta hee Darshanik aur vajandar kavitaa likii hai apane .Hardik badhai sveekaren.
HemantKumar

Kavyadhara said...

प्रिय मित्र ,

परमपिता , परमेश्वर , जगत्स्वामी , जगेश , सर्त्रव्यापी इश्वर आप सभी को सपरिवार सकुशल ,सुरक्षित एवं आयुष्मान रखे . आप सबकी समस्त आशाओं को ,अभिलाषाओं को एवम स्वपनों को साकार करे.

आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

कुछ फूल, कुछ सितारे और एक चाँद
थोड़ी सी चाँदनी , नर्म धूप की महक
धनवर्षा, दहलीज़ पे किस्मत की दस्तक
मुंडेर पर चुग्गा चुगती चिड़ियों की चहक
घर में चहकते बच्चे , बतियाते माँ बाप
चिरागों के बजाये जलते हुए आफ़ताब
हर चीज़ में बरक्कत , हर शै में इजाफा
हर मुश्किल तलाशती खुद अपना ही जवाब
नई सुबह जब आसमान से एक नया सूरज
धकेल पाँव से निकले जब अँधेरे की चादर
नए साल की पहली सुनहरी किरन "दीपक"
मुबारक़ बन के आगोश में ले ले तुम्हें आकर

नया साल मुबारक़
नया साल मुबारक़
नया साल मुबारक़
aap sab ko navvarsh 2010 ki haardik mangalmay shubhkaamnaaye.

ALL RIGHT RESERVED @DEEPAK SHARMA
http://www.kavideepaksharma.com
http://kavidepaksharma.blogspot.com

रवीन्द्र प्रभात said...

बढ़िया शुरूआत है.....बधाई स्वीकार करें।

Anonymous said...

हिमांशु जी ने कहा ....

हम कहाँ हैं और कहाँ जा रहे हैं; इस पर न तो चिंतित होते हैं और न ही चिन्तनशील बनते हैं. अब लीजिये ना हर रोज कहते हैं कि फलां नेता भ्रष्ट है तो फलां घुसखोर. आखिरकार हम यह क्यों नहीं सोचते हैं कि इसके जड़ में कौन है. गौर से देखें तो हम अपने आप को उस जगह पायेंगे जहाँ उन नेताओं को देखतें हैं. वास्तव मे हम अपनी जिम्मेदारियों से दिन प्रति दिन अपना मूह मोड़ते जा रहें हैं. क्या इस शासन प्रणाली के दूषित होने में हमारा कोई हाथ नहीं? क्या इस शासन प्रणाली को भ्रष्ट बनाने में हम साझेदार नहीं? बिल्कुल हम दोषी हैं; हमारा समाज दोषी है; हमारे सिपहसलार दोषी हैं. आप किस हद तक अपनेको दोषी मानते है..... शायद आपके मूह पड़ ताला जड़ जायेगा!

संगीता पुरी said...

इस नए वर्ष में नए ब्‍लॉग के साथ आपका हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. आशा है आप यहां नियमित लिखते हुए इस दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होंगे .. आपके और आपके परिवार के लिए नया वर्ष मंगलमय हो !!

mitthu said...

Himanshu said...

हाड़ गल जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
वो बेचारा मर जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
आखिर कब तक कहेंगे ...

हॉस्पिटल में दम तोड़ते गरीब
ठेला पर पड़ा शव
बिना किसी कफ़न के
पूर्व पछवा किसी की परवाह नहीं
फिर पीछे से आवाज़
शव सड़ जायेगा
उठाओ इसे बिना कफ़न के
पर कब तक...

खादी की गर्माहट से तृप्त
जनता को खरीदने में संलिप्त
चाटुकारों से घिरे
पश्मीना उल के शाल से लिपटे
बाँट दिया कम्बल...
दे दिया कुछ सूखी लकड़ी
जितना धीरे चढ़ रहा था
लाल पानी का नशा
उतनी ही तेजी से जल रही थी लकड़ी
पहर भर भी बिता नहीं कि
अलाव के पास ही लुढका
एक गरीब;
पालीथीन के नशे में धुत्त
नशेडी ने कहा
हाड़ गल जायेगा...

हिमांशु

Anonymous said...

Himanshu said...

हाड़ गल जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
वो बेचारा मर जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
आखिर कब तक कहेंगे ...

हॉस्पिटल में दम तोड़ते गरीब
ठेला पर पड़ा शव
बिना किसी कफ़न के
पूर्व पछवा किसी की परवाह नहीं
फिर पीछे से आवाज़
शव सड़ जायेगा
उठाओ इसे बिना कफ़न के
पर कब तक...

खादी की गर्माहट से तृप्त
जनता को खरीदने में संलिप्त
चाटुकारों से घिरे
पश्मीना उल के शाल से लिपटे
बाँट दिया कम्बल...
दे दिया कुछ सूखी लकड़ी
जितना धीरे चढ़ रहा था
लाल पानी का नशा
उतनी ही तेजी से जल रही थी लकड़ी
पहर भर भी बिता नहीं कि
अलाव के पास ही लुढका
एक गरीब;
पालीथीन के नशे में धुत्त
नशेडी ने कहा
हाड़ गल जायेगा...

हिमांशु

Kumar Krishan Sharma said...

bahutshandaar. jo kuch socha tha us se kain guna acha

  क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...