महाभारत फ़िर से दुहरा रहा है
कौरव-पांडव में झमेला खड़ा हैआधुनिक महाभारत काल -
और अल्पसंख्यक पांडवों कीधर्मवादी युधिष्ठिर और
वहीँ एकीकरण के सवाल पर
वर्ग संघर्ष के दरम्यान
राष्ट्रीयकरण और सामाजीकरण -की चिंता में अधगले जन्मांध
सामने दिव्य दृष्टि लगाये संजय
यथार्थ के नए पहलुओं के अध्ययन में रत
विचार और क्रांति को
बरगलाते कर्ण का कथ्य कि
कौरव मात्र के हितभागी हैं भीष्म
लेकिन विदुर को है मालूम
पितामह के लिए समान हैं कौरव और पांडव ।
सौ में एक है दुर्योधन
भुना रहा पितामह को
और पीछे चले जा रहे अबूझ निन्यानवे।
भवेश
सामने दिव्य दृष्टि लगाये संजय
यथार्थ के नए पहलुओं के अध्ययन में रत
विचार और क्रांति को
बरगलाते कर्ण का कथ्य कि
कौरव मात्र के हितभागी हैं भीष्म
लेकिन विदुर को है मालूम
पितामह के लिए समान हैं कौरव और पांडव ।
सौ में एक है दुर्योधन
भुना रहा पितामह को
और पीछे चले जा रहे अबूझ निन्यानवे।
भवेश
3 comments:
badhiya
lajwab
वाह, कविताएं तो समझ में मुझे नहीं आती, हां सपाट हो, बाबा नागार्जुन की तरह यथार्थ हों तो समझ लेता हूं।
कभी मेरी गली भी आया करों।
एम अखलाक
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