Wednesday 21 April 2010

अगर मेरे पास पैसा होता

अगर मेरे पास पैसा होता
कुछ चमचों को लेकर दौड़ते
समाज कल्याण की बातें करते
आश्वशनों का झुनझुना बजाते

झूठ बोलते, मैं भी नेता होता.
अगर मेरे पास पैसा होता . 

गरीबों को खाना दूंगा
बेरोजगारों को नौकरी दूंगा
बेघर का घर बनवाऊंगा

वादे करके, मैं भी नेता बनता
अगर मेरे पास पैसा होता .

प्यासे मन को पानी देकर 
भूखों को दाना-खाना देकर
चमचों की जेबें भरकर

सपने दिखाकर, मैं भी नेता बनता
अगर मेरे पास पैसा होता .

Thursday 1 April 2010

आज और कल

उस समय
छात्र जीवन में
धराधर जवाब देने वाला
मेरा सहपाठी
और निरूत्तर मैं,
- शर्म आती थी .

कॉलेज के ज़माने में
हर विधा में दे देता व्याख्यान
मेरा क्लासमेट
वहां भी मौन
मैं मूढ़
तब भी -
- शर्म आती थी.

दफ्तर में
बॉस का प्रियपात्र
बना मेरा सहकर्मी
कार्यकुशल कहलाता
मैं - घोषित अकार्यकुशल,
- शर्म आती थी.

लेकिन,
मैं चौंकता रहा हूँ -
सहपाठियों, क्लामेटों और सहकर्मियों को
जब-जब आया
मेरा बेहतर परीक्षा परिणाम
प्रबंधन ने दिया बेस्ट सर्विस का इनाम.

और, तब
लोगों ने महसूसा
मेरे चिंतनशील मन और गतिशील तन को.
आज शर्म नहीं आयी.

लेकिन,
उनको क्यों नहीं आती शर्म
जो टंगने वाले हैं दीवारों पर
दिन-दो-दिन बाद
चढ़ेंगे उन पर पुष्पाहार
लेकिन पुष्पाहार चढाने वाले हाथ
होंगे अबोध और अज्ञान
उन्हें - नहीं आती शर्म.

मुझे मालूम है
मैं भी टंग जाऊंगा एक दिन दीवारों पर
मुझ पर भी चढ़ेंगे पुष्पाहार
लेकिन वो हाथ होंगे
मेरी चिंतन और मेरी मेहनत की उपज
मुझसे बहुत बड़े ...

उस दिन -
दीवार पर टंगी मेरी तस्वीर
मुस्कराती नज़र आयेगी.

  क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...