Thursday 30 September 2010

शानो-शौकत

हमारे घर की दीवार देख
इसकी ऊंचाई भी देख
बड़ी मिहनत से बनाई है
समझ ले ये मेरी कमाई है

मेरे शानो-शौकत देख
ऐशो-आराम मेरे तू देख
ये गाड़ियाँ नई-नई लाई है
समझ ले ये मेरी कमाई है

मेरे पैरहन पर गौर फरमा
चमकते बूटों को निहार
देख आदमकद सफाई है
समझ ले ये मेरी कमाई है

मेरे रूतबे से वाकिफ सब
शहर में हैं मुरीद सब मेरे
नहीं ये ताल्लुकात हवा-हवाई है
समझ ले ये मेरी कमाई है

गांव की गंध नहीं आती है 
उस मिट्टी से दूरी सताती है
कहते हैं ये खुद से बेवफाई है
क्या व्यर्थ ये सारी कमाई है?

Thursday 23 September 2010

पथ बदलते हैं

पथ बदलते हैं
हम और आप सभी
घर बदलने के लिए
घर सँवारने के लिए
घर सजाने के लिए
और
अच्छे ठिकाने की चाहत में
रास्ते आड़े हों
रास्ते तिरछे हों
टेढ़े हों - मेढे हों
ऊपर या नीचे हों
मंजिल तो चाहिए आख़िरकार

हमने परिंदों से सीखा है
उड़ना और उड़ते रहना.

  क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...