अजीब बनावट थी उस चेहरे की
हर चेहरा उसी ओर मुड़ गया था
अपने चेहरे को भूलकर
लोग उसी चेहरे को देखते थे
लोग देखते थे चेहरे की सोखी
चेहरे का खुरदुरापन
और देखते थे बदलते भाव
यह भूलकर कि अपना चेहरा
भी बदलता है रंग-ढंग
और हाव-भाव भी
यह भूल जाते थे
कि हमारा चेहरा भी लोग पढ़ रहे हैं
दरअसल, चेहरे होते ही ऐसे हैं
इत्मीनान से धोखा दे जाते हैं.
Thursday 8 July 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)
क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...
-
महाभारत फ़िर से दुहरा रहा है कौरव - पांडव में झमेला खड़ा है आधुनिक महाभारत काल - और अल्पसंख्यक पांडवों की जोर पकड़ती आरक्षण की मा...
-
ओ कवि! ओ कवि! कुछ और रचो। शब्द बहुत लिखे, भाव भी उड़ेले। देखो तो! शब्द-भाव के हाल। एक सहमा-सा, दूजा बेजान-सा। कव...
-
वो कोई एक जो जानता है तूफानों से – खामोशी चुराने का हुनर वो मैं नहीं वो तू नहीं वो कोई एक जो...