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भवेश चंद
Friday, 11 December 2009
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गजल पूरी नजर से अधूरा घर देखता हूं। गांवों में अधबसा शहर देखता हूं। पूरे सपने बुने, अधूरे हासिल हुए। फिर-फिर मैं अपने हुनर...
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चांद, तारे, फूल, शबनम ----------------- चांद, जिस पर मैं गया नहीं जिसे मैंने कभी छुआ नहीं उजले-काले रंगों वाला- जो दिन में कभी द...
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पिता हूं तलहटी में बचे तालाब के थोड़े से पानी भागती जिंदगी में बची थोड़ी सी जवानी दोनों को समेटकर सींचता हूं बड़े...
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हमारे और तुम्हारे अलग-अलग अस्तित्व, एकाकार होते हम अँधेरे में बिस्तर पर संवेदना के व्यापक गलियारे में विचरते अलग-अलग, साथ-साथ. कुला...
1 comment:
good start
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