Sunday, 13 December 2009

द्वंद्व

महाभारत फ़िर से दुहरा रहा है
कौरव-पांडव में झमेला खड़ा है
आधुनिक महाभारत काल -
और अल्पसंख्यक पांडवों की
जोर पकड़ती आरक्षण की मांग के बीच
हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ ।

धर्मवादी युधिष्ठिर और
सामंती दुर्योधन , सलाहकार शकुनी मामा
विजातीय मामा की नज़र में
विजातीय कौरव और पांडव
वहीँ एकीकरण के सवाल पर
मौन साधे कन्हैया
धनुर्धर और गदाधारी चुप

वर्ग संघर्ष के दरम्यान
राष्ट्रीयकरण और सामाजीकरण -
की चिंता में अधगले जन्मांध
सामने दिव्य दृष्टि लगाये संजय
यथार्थ के नए पहलुओं के अध्ययन में रत

विचार और क्रांति को
बरगलाते कर्ण का कथ्य कि
कौरव मात्र के हितभागी हैं भीष्म
लेकिन विदुर को है मालूम
पितामह के लिए समान हैं कौरव और पांडव ।

सौ में एक है दुर्योधन
भुना रहा पितामह को
और पीछे चले जा रहे अबूझ निन्यानवे।

भवेश

3 comments:

Anonymous said...

badhiya

bhupender bhatia said...

lajwab

एम अखलाक said...

वाह, कविताएं तो समझ में मुझे नहीं आती, हां सपाट हो, बाबा नागार्जुन की तरह यथार्थ हों तो समझ लेता हूं।

कभी मेरी गली भी आया करों।

एम अखलाक

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