तेरे स्पृश्य चेहरे पर
उभरने वाले भावों-विचारों को
पढता हूँ -
हर रोज, हर पल, हर वक़्त .
मुझे एहसास है
तुम्हारी गहराइयों का,
तुम्हारे ख्वाब
तुम्हारे सपनों की भी
परवाह है मुझे.
मैं कह सकता हूँ
यह महज प्यार नहीं,
दूर तक सुनी जाने वाली
दिल की आवाज़ नहीं
बंधन है, आलोड़न है, अपनापन है
ये मैं नहीं हम कहते हैं.
Sunday 24 January 2010
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