Sunday 24 January 2010

दोहरा संवाद

तेरे स्पृश्य चेहरे पर
उभरने वाले भावों-विचारों को
पढता हूँ -
हर रोज, हर पल, हर वक़्त .
मुझे एहसास है
तुम्हारी गहराइयों का,
तुम्हारे ख्वाब
तुम्हारे सपनों की भी
परवाह है मुझे.
मैं कह सकता हूँ
यह महज प्यार नहीं,
दूर तक सुनी जाने वाली
दिल की आवाज़ नहीं
बंधन है, आलोड़न है, अपनापन है
ये मैं नहीं हम कहते हैं.

No comments:

  क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...