Monday 8 February 2010

नज़्म

ज़माना बदल रहा है ये और बात है.
बेलौस हैं मेरे कदम ये और बात है.

आसमां नापती है सैर करती है चिड़िया
लौट आती दरख़्त पर ये और बात है.

मेरे परवाज की परवाह क्यों करे कोई
चुभती है उड़ान उन्हें ये और बात है.

तुम्हारे कदम नपे-तुले नज़र सधी हुई
डगमगा रहा मैं बीच राह ये और बात है.

मेरी रफ़्तार पर न कर जहमते सौदागरी
खाके ठोकर संभलते हैं ये और बात है.

सरेबाजार मोल लगा भाव तय किये
न आया खरीदार कोई ये और बात है.

आ चल मेरे साथ मेरी आँख देख
नजाकत सिर्फ यहीं ये और बात है.

2 comments:

वीनस केसरी said...

इंतजार इंतजार और इंतजार, तब जाकर कुछ मिला..

अभी तो बहुत कुछ मिलेगा :)


मेरे परवाज की परवाह क्यों करे कोई
चुभती है उड़ान उन्हें ये और बात है

बहुत बेहतरीन बात कही आपने

ये शेर ख़ास पसंद आया
आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा

मै आपसे कुछ बाते शेयर करना चाहता हूँ

आपने लयबद्ध जो रचना पोस्ट की है वो गजल नहीं है
दरअसल गजल लिखने का कुछ नियम है जिसमे हम बहर काफिया रदीफ़ आदि के निर्वहन को बाध्य होते है
गजल व बहर के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए हो तो सुबीर जी के ब्लॉग पर जाइये
इसे पाने के लिए आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैं।
यदि आप गजल के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं कृपया आप यहाँ जा कर पुरानी पोस्ट पढिये

लोग अक्सर कमेन्ट के जरिये दूसरों के लिखे की तारीफ ही करते है मैंने ये कमेन्ट क्यों किया जानने के लिए आप मेरी ये पोस्ट पढ़ सकते है

आपने अपनी इ मेल आई दी नहीं ओपन की है इस लिए मुझे मजबूरन ये कमेन्ट करना पड़ा यदि आपको कोई आपत्ति हो तो इस कमेट को डिलीट कर दीजिये

वीनस केसरी

Himanshu Shekhar said...

vastav main venus kesari ne acchi bat kahi hai, rachna ki utkristta mai koyi kami nahi; laki iske paimane mai hame fit baithna hoga.

सरेबाजार मोल लगा भाव तय किये
न आया खरीदार कोई ये और बात है
mujhe apki ye pankti bahut hi acchi lagi. iskeliye aap badhi ke patra hain.

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