पथ बदलते हैं
हम और आप सभी
घर बदलने के लिए
घर सँवारने के लिए
घर सजाने के लिए
और
अच्छे ठिकाने की चाहत में
रास्ते आड़े हों
रास्ते तिरछे हों
टेढ़े हों - मेढे हों
ऊपर या नीचे हों
मंजिल तो चाहिए आख़िरकार
हमने परिंदों से सीखा है
उड़ना और उड़ते रहना.
Thursday 23 September 2010
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3 comments:
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
अच्छी सीख दी.लिखते रहिये.
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