गजल
पूरी
नजर से अधूरा घर देखता हूं।
गांवों
में अधबसा शहर देखता हूं।
पूरे
सपने बुने, अधूरे हासिल हुए।
फिर-फिर
मैं अपने हुनर देखता हूं।
जिंदगी
आधी कटी, पूरे तूफां आए।
कितनी
ऊंची उठी लहर देखता हूं।
भरोसा
की पूरी जमीं, फसल अधूरी।
किसने
बो दिए यहां जहर देखता हूं।
अधूरा
जान कर लिखी पूरी गजल।
कितना
सही बैठा बहर देखता हूं।