Monday, 23 December 2019

सत्ता की डगर


वो कोई एक
जो जानता है
 तूफानों से
 खामोशी चुराने का हुनर
   वो मैं नहीं
   वो तू नहीं

वो कोई एक
जो जानता है
 भरी भीड़ में
 कैसे रहते हैं सबसे इतर
   वो मैं नहीं
   वो तू नहीं

वो कोई एक
जो जानता है
 मीठे बोल से
 कैसे घोला जाता है जहर
   वो मैं नहीं
   वो तू नहीं

वो कोई एक
जो जानता है
 कैसे चलेगी
 यहां मेरे नाम की लहर
   वो मैं नहीं
   वो तू नहीं

वो कोई एक
जो जानता है
 आसान नहीं
 कठिन है सत्ता की डगर
   वो मैं नहीं
   वो तू नहीं

पर, वो एक है
अब जान गया है
   रहकर सबसे इतर
   खामोशियां चुराकर
   घोलकर जहर
   सहारे नाम की लहर
   सत्ता की डगर
 इस देश में लंबा नहीं चल सकते

  गजल   पूरी नजर से अधूरा घर देखता हूं। गांवों में अधबसा शहर देखता हूं।   पूरे सपने बुने, अधूरे हासिल हुए। फिर-फिर मैं अपने हुनर...