उस समय
छात्र जीवन में
धराधर जवाब देने वाला
मेरा सहपाठी
और निरूत्तर मैं,
- शर्म आती थी .
कॉलेज के ज़माने में
हर विधा में दे देता व्याख्यान
मेरा क्लासमेट
वहां भी मौन
मैं मूढ़
तब भी -
- शर्म आती थी.
दफ्तर में
बॉस का प्रियपात्र
बना मेरा सहकर्मी
कार्यकुशल कहलाता
मैं - घोषित अकार्यकुशल,
- शर्म आती थी.
लेकिन,
मैं चौंकता रहा हूँ -
सहपाठियों, क्लामेटों और सहकर्मियों को
जब-जब आया
मेरा बेहतर परीक्षा परिणाम
प्रबंधन ने दिया बेस्ट सर्विस का इनाम.
और, तब
लोगों ने महसूसा
मेरे चिंतनशील मन और गतिशील तन को.
आज शर्म नहीं आयी.
लेकिन,
उनको क्यों नहीं आती शर्म
जो टंगने वाले हैं दीवारों पर
दिन-दो-दिन बाद
चढ़ेंगे उन पर पुष्पाहार
लेकिन पुष्पाहार चढाने वाले हाथ
होंगे अबोध और अज्ञान
उन्हें - नहीं आती शर्म.
मुझे मालूम है
मैं भी टंग जाऊंगा एक दिन दीवारों पर
मुझ पर भी चढ़ेंगे पुष्पाहार
लेकिन वो हाथ होंगे
मेरी चिंतन और मेरी मेहनत की उपज
मुझसे बहुत बड़े ...
उस दिन -
दीवार पर टंगी मेरी तस्वीर
मुस्कराती नज़र आयेगी.
Thursday, 1 April 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...
-
हमारे और तुम्हारे अलग-अलग अस्तित्व, एकाकार होते हम अँधेरे में बिस्तर पर संवेदना के व्यापक गलियारे में विचरते अलग-अलग, साथ-साथ. कुला...
-
बात-बात पर धमकी और फटकार सो-कोज के बाद जारी तकरार रोजनामचे में शामिल उनका व्यवहार . ये कैसे हो गया वो कैसे हो गया हमसे पूछ तो लेते ...
-
पिता हूं तलहटी में बचे तालाब के थोड़े से पानी भागती जिंदगी में बची थोड़ी सी जवानी दोनों को समेटकर सींचता हूं बड़े...
1 comment:
man aurv mijaj dono ko jhakjhorti UTTAM rachana hai. kavita mai dikhlaye gaye phasle behtar hain.
Post a Comment