क्या हो जाता गर
चितचोर
मुझे अच्छी लगती है... शब्दों की दुनिया
Friday, 31 March 2023
Friday, 30 September 2022
पिता हूं
तलहटी में बचे तालाब के थोड़े से पानी
भागती जिंदगी में बची थोड़ी सी जवानी
दोनों को समेटकर सींचता हूं
बड़े हो रहे बच्चों का पिता हूं
आती हुई झर्रियों को छुपाने
की जुगत में
वक्त ने जो बख्शी, उतनी-सी मुरव्वत
में
देखो, मैं बेहिसाब दौड़ता हूं
बड़े हो रहे बच्चों का पिता
हूं
बस्ता, कपड़े, टिफिन, फीस से
भी आगे
वक्त से कदमताल के लिए देर से
जागे
इसलिए अब तेज भागता हूं
बड़े हो रहे बच्चों का पिता
हूं
Tuesday, 12 October 2021
पीड़ित क्रांति
क्रांति,
तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल
सुना,
घर छोड़ गया जो बेटा था वाचाल
तर्पण
तुम्हारे विचारों का कर दिया
अवशेष
फल्गु की धारा में बहा दिया
आखिरी
लाल सलाम भी कह दिया
उखड़ा
पैबंद, तुम फिर हुई फटेहाल
क्रांति,
तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल
छोड़
गया वो छोरा तुमको बीच धार
नहीं
हो सकी नवोन्माद की नैया पार
फंसी
थी, फंसी रह गई तुम मझधार
ऐसे
क्यूं बदला लेनिनग्राद का लाल
क्रांति,
तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल
अपने
घर में हारा तो घर ही तोड़ गया
कैसा
लड़ाका! डंडा-झंडा छोड़ गया
बदल
विचारों को सारी धारा मोड़ गया
तेरे
इंकलाब का यह असमय इंतकाल
क्रांति,
तुम कैसी हो, क्या हैं तेरे हाल
Wednesday, 8 September 2021
चांद, तारे,
फूल, शबनम
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चांद, जिस पर मैं गया नहीं
जिसे मैंने कभी छुआ नहीं
उजले-काले रंगों वाला-
जो दिन में कभी दिखा नहीं
चांद तुम्हें मैं कैसे कह दूं
गलतबयानी मैं कैसे कर दूं
तारे, दूर गगन में रहते हैं
मुट्ठी में कभी न आते हैं
दूर बहुत उसकी टिमटिम
पौ फटते ही गुम जाते हैं
तारे तुमको कैसे लाकर दूं
गलतबयानी में कैसे कर दूं
फूल, इतने सारे गुलशन में
अजग-गजब के महक चमन में
इतने-इतने रंगों में है मिलता
मैं भटक गया हूं इस उपवन में
फूल तुम्हें मैं खत में क्यों भेजूं
गलतबयानी में कैसे कर दूं
शबनम, इन बूंदों की क्या बिसात
तुम, तुम हो इसकी क्या औकात
मौसम का मारा रहता ये खुद ही
इससे कब बननी अपनी बात
शबनम के माफिक क्यों लिख दूं
गलतबयानी मैं कैसे कर दूं
Wednesday, 3 March 2021
Monday, 23 December 2019
सत्ता की डगर
Sunday, 14 August 2016
गजल
क्या हो जाता गर दिल खोल लेने देते जीभर बोल लेने देते मन की कह लेने देते उनका इजहार हो जाता आपका इनकार हो जाता क्या हो जाता गर कटवा लेते जर...
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पिता हूं तलहटी में बचे तालाब के थोड़े से पानी भागती जिंदगी में बची थोड़ी सी जवानी दोनों को समेटकर सींचता हूं बड़े...
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चांद, तारे, फूल, शबनम ----------------- चांद, जिस पर मैं गया नहीं जिसे मैंने कभी छुआ नहीं उजले-काले रंगों वाला- जो दिन में कभी द...
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हमारे और तुम्हारे अलग-अलग अस्तित्व, एकाकार होते हम अँधेरे में बिस्तर पर संवेदना के व्यापक गलियारे में विचरते अलग-अलग, साथ-साथ. कुला...