मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक जीवन-मूल्यों की तरह।
रोजमर्रा की जरूरतों की तरह।
रसोई से लेकर ओसारे तक
घर-आंगन की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक वैचारिक-मूल्यों की तरह।
आचार और विचार की तरह।
घर से लेकर दफ्तर तक
सोच-संस्कार की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक शाश्वत-मूल्यों की तरह।
गतिशील संवाद की तरह।
शुरू से लेकर आखिर तक
प्रतिबद्ध अवधारणाओं की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक सामाजिक-मूल्यों की तरह।
हमारी मान्यताओं की तरह।
बड़ों से लेकर छोटे तक
प्यार-दुलार की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक गणितीय-मूल्यों की तरह।
अंकों के खेल की तरह।
आमदनी से लेकर खर्च तक
हिसाब-किताब की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक भौगोलिक-मूल्यों की तरह।
सुविधा और साधन की तरह।
यहां से लेकर वहां तक
सारे जहान की तरह।
मूल्य,
बहुत मायने रखता है जीवन में
ठीक संबंध-मूल्यों की तरह।
दोस्तों और दुश्मनों की तरह।
अच्छे से लेकर बुरे तक
बदलते रिश्ते की तरह।
Wednesday, 29 December 2010
Sunday, 19 December 2010
कांग्रेस
बुढिय़ा चहक रही है।
बुढिय़ा फुदक रही है।
बुढिय़ा की खुशी असीम है।
यह पल कितना हसीन है।
सवा सौ साल कम नहीं होते-
दिमाग काम करना बंद कर देता है।
हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं।
आला यह कि- बीच राह सांस टूट जाती है।
यह बुढिय़ा फिर भी बेफिक्र है।
दशकों से राज करती आ रही थी।
अब कहेगी सदियों से राज करती हूं।
वह राज करने के लिए ही जिंदा है।
यह बुढिय़ा आखिर मरती क्यों नहीं?
न आपातकाल का शर्म इसे डुबो पाई।
न बोफोर्स के गोले इसे दहका पाई।
न कभी मौत का खौफ सहमा पाई।
बेलज्ज बुढिय़ा के बच्चे भी बूढ़े हो गए।
पहले राजकुमार फिर महाराज बने।
राज मगर चलता रहा, चलता रहेगा
छोटे-छोटे कॉमर्शियल ब्रेक के बावजूद।
बुढिय़ा अब पोते पर गुमान करती है।
बुढ़ाए-सठियाये बेटे को छोड़ दी-
पोते को अब युवराज कहती है।
मगर इशारे में महाराज बताती है।
बुढिय़ा फिर भी नहीं मरेगी।
वह जिंदा रहेगी ताजिंदगी।
गाल भले ही चिपक जाएं।
दांत टूट जाए, वह थोथी हो जाए।
बुढिय़ा, महाराज या हे महामना युवराज।
क्या है आपके लंबे जीवन का राज?
बुढिय़ा फुदक रही है।
बुढिय़ा की खुशी असीम है।
यह पल कितना हसीन है।
सवा सौ साल कम नहीं होते-
दिमाग काम करना बंद कर देता है।
हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं।
आला यह कि- बीच राह सांस टूट जाती है।
यह बुढिय़ा फिर भी बेफिक्र है।
दशकों से राज करती आ रही थी।
अब कहेगी सदियों से राज करती हूं।
वह राज करने के लिए ही जिंदा है।
यह बुढिय़ा आखिर मरती क्यों नहीं?
न आपातकाल का शर्म इसे डुबो पाई।
न बोफोर्स के गोले इसे दहका पाई।
न कभी मौत का खौफ सहमा पाई।
बेलज्ज बुढिय़ा के बच्चे भी बूढ़े हो गए।
पहले राजकुमार फिर महाराज बने।
राज मगर चलता रहा, चलता रहेगा
छोटे-छोटे कॉमर्शियल ब्रेक के बावजूद।
बुढिय़ा अब पोते पर गुमान करती है।
बुढ़ाए-सठियाये बेटे को छोड़ दी-
पोते को अब युवराज कहती है।
मगर इशारे में महाराज बताती है।
बुढिय़ा फिर भी नहीं मरेगी।
वह जिंदा रहेगी ताजिंदगी।
गाल भले ही चिपक जाएं।
दांत टूट जाए, वह थोथी हो जाए।
बुढिय़ा, महाराज या हे महामना युवराज।
क्या है आपके लंबे जीवन का राज?
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